भारत के यशस्वी क्रिकेटर कपिल देव ने सुपरस्टार बल्लेबाज विराट कोहली को टीम से बाहर करने की बात कह कर एक नयी बहस को जन्म दे दिया है। भारत के कप्तान रोहित शर्मा तथा पाकिस्तान के स्टार बल्लेबाज बाबर आज़म ने कोहली का बचाव कर उत्कृष्ट खेल भावना का परिचय दिया है।
रोहित ने कहा, जो खिलाड़ी कई वर्षों से बेहतरीन प्रदर्शन करता रहा है उसकी एक दो सरीज के आधार पर अनदेखी नहीं की जा सकती। एक खिलाड़ी के करियर में ऊंच-नीच होते रहता है। हमें पता है कि इस खिलाड़ी की कितनी अहमियत है।
क्या पाजी (कपिल देव) के करियर में ऐसा नहीं हुआ? रोहित ने बहुत वाजिब सवाल उठाया है। यह जानना जरूरी है कि जब कपिल देव के क्रिकट करियर में बुरा दौर आया था तब क्या हुआ था।
कपिल देव की महान उपलब्धि को प्राप्त करने के लिए मिलते रहे मौके
महान कपिल देव ने अपना 400वां विकेट दिसम्बर 1992 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ पर्थ में लिया था। ये उनका 115वां टेस्ट मैच था इस दौरान उनकी उम्र भी 33 साल हो चुकी थी। देखा जाए तो उस समय विश्व क्रिकेट में यह बहुत बड़ी कामयाबी थी। 400 विकेट लेने वाले वे दुनिया के सिर्फ दूसरे गेंदबाज थे। उनकी इस उपलब्धि पर ऑस्ट्रेलिया के दर्शकों ने भी खड़े हो कर उनके सम्मान में ताली बजायी थी।
अब वे एक विश्व कीर्तिमान के बिल्कुल नजदीक पहुंच गए थे। तब टेस्ट क्रिकेट में सबसे अधिक विकेट (431) लेने का कीर्तिमान न्यूजीलैंड के रिचर्ड हैडली के नाम पर दर्ज था। स्पिनरों के देश में कपिल देव की यह उपलब्धि अभिभूत करने वाली थी।
भारत के क्रेकिट प्रेमियों की उनसे उम्मीद बढ़ चुकी थी। वे चाहते थे कि कपिल देव जल्द से जल्द रिचर्ड हैडली का लम्बे समय से चला आ रहा वर्ल्ड रिकॉर्ड तोड़ दें। लेकिन तभी दुर्भाग्य से भारत का यह महान तेज गेंदबाज दबाव में आकर अपनी धार खोने लगा। उन्हे महज 32 विकेट लेने के लिए 15 टेस्ट मैच खेलने पड़े।
कपिल ने फरवरी 1994 में श्रीलंका के हसन तिलकरत्ने को आउट कर अपना 432वां विकेट लिया था। लेकिन यह कपिल का 130वां टेस्ट था। इस मैच में भी उन्होंने सिर्फ 1 विकेट लिया।
लेकिन यह एक विकेट ही भारतीय क्रिकेट का स्वर्णीम इतिहास बन गया था। हालांकि तब उनके विकेट लेने का औसत प्रति टेस्ट करीब दो विकेट था। इस टेस्ट के बाद वे सिर्फ एक और टेस्ट मैच और खेल सके थे।
आखिरी दिनों में विकेट के लिए तरस रहे थे कपिल देव
भारतीय क्रिकेट प्रबंधकों ने कपिल को यह विर्ल्ड रिकॉर्ड बनाने के लिए लीग से हट कर बहुत सारे मौके दिये थे। कपिल ने भारतीय क्रिकेट को बुलंदी पर पहुंचाने में अहम भूमिका निभायी थी। 1983 में भारत को विश्व कप जीता कर उन्होंने पूरी दुनिया में भारत का गौरव बढ़ाया था। इसलिए क्रिकेट प्रबंधकों ने उनके अमूल्य योगदान को देखते हुए पर्याप्त मौके दिये।
400 से 432 विकेट के सफर में कई ऐसे मौके आये जब वे एक विकेट के लिए तरस रहे थे। उस समय भी लोग उन्हें टीम से बाहर करने की भी बात करते थे। लेकिन चयनकर्ताओं ने उन पर विश्वास बनाये रखा। फरवरी 1994 में कपिल ने 432 रनों का विश्व रिकॉर्ड बनाया था।
मार्च 1994 में उन्होंने न्यूजीलैंड के खिलाफ अपना आखिरी टेस्ट मैच खेला ,उनके आखिरी टेस्ट मैच में उन्हें सिर्फ दो विकेट मिले थे। 1994 के न्यूजीलैंड दौरे में भारत को सिर्फ एक ही टेस्ट मैच खेलना था। भारत लौटने के करीब आठ महीने के बाद दिपावली के दिन उन्होंने क्रिकेट से संन्यास लेने की घोषणा कर दी।
कपिल के लिए श्रीनाथ की अनदेखी
उस समय कुछ क्रिकेट जगत के जानकारों का मानना था कि कपिल को दो साल पहले ही संन्यास ले लेना चाहिए था। लेकिन वे खेले और उन्हें पर्याप्त मौके भी मिले जिसकी वजह से वे वर्ल्ड रिकॉर्ड बना सके। उस समय भारत के कप्तान मोहम्मद अजहरुद्दीन और टीम मैनेजर अजीत वाडेकर भी चाहते थे कि किसी तरह कपिल देव रिचर्ड हैडली का वर्ल्ड रिकॉर्ड तोड़ दें।
इसकी वजह से 1991 से 1994 के बीच श्रीनाथ को भारत में होने वाले टेस्ट मैच के लिए अक्सर भुला दिया जाता था। जब कि उस समय वे भारत के उभरते हुए वास्तविक तेज गेंदबाज थे और 1991 में आस्ट्रेलिया में टेस्ट करियर का आगाज कर चुके थे। कपिल देव के 1994 में रिटायर होने के बाद ही कही जाकर श्रीनाथ को भारत में टेस्ट खेलने का मौका मिला था।
किसी काबिल खिलाड़ी पर क्यों करना चाहिए भरोसा?
जैसा कि रोहित शर्मा ने कहा है, हर खिलाड़ी के जीवन में एक बुरा वक्त आता ही है। इस बुरे वक्त में उसको नैतिक समर्थन की जरूरत होती है ताकि वह अपना खोया हुआ आत्मविश्वास वापस प्राप्त कर सके। कुछ मैचों में असफलता के आधार पर किसी विशिष्ट खिलाड़ी का आंकलन नहीं किया जा सकता।
एल्विन कालीचरण (1972 से 1980) वेस्टइंडीज के मैच जिताऊ बल्लेबाज थे। उस समय वेस्टइंडीज के कप्तान क्लाइव लॉयड थे। कालीचरण के करियर में एक दौर वह आया जब उनके बल्ले से रन नहीं निकल रहे थे। लेकिन कप्तान लॉयड उन्हें हर बार मौके दिए जा रहे थे।
यह देख कर इंग्लैंड के एक पत्रकार ने लॉयड से पूछा, कालीचरण तो रन नहीं बना रहे फिर उन्हें टीम में क्यों चुन लेते हैं ? तब लॉयड ने जवाब दिया था, ‘फॉर्म इज टेम्पररी बट क्लास इज क्लास’। थोड़ा इंतजार कीजिए फिर देखिए वे (कालीचरण) क्या कमाल करते हैं।”
भरोसे से यूं होता है कायापलट
कालीचरण ने अपने कप्तान के भरोसे को सच साबित किया। 1975 में जब वेस्टइंडीज ने पहला विश्वकप जीता था तो उसमें कालीचरण की भी महत्वपूर्ण भूमिका थी। उन्होंने उस समय दुनिया के सबसे खौफनाक गेंदबाज माने जाने वाले डेनिस लिली की 10 गेंदों पर 35 रन बटोरे थे जिसमें सात चौके और एक छक्का शामिल था।
कालीचरण की इस बैटिंग से लिली का हौवा खत्म हो गया था। सेमीफाइनल में कालीचरण ने न्यूजीलैंड के खिलाफ 72 रन बनाये जिसकी वजह से वेस्टइंडीज पांच विकेट से मैच जीतने में कामयाब हुआ। कालीचरण मैन ऑफ द मैच बने थे। किसी काबिल खिलाड़ी पर क्यों भरोसा करना चाहिए यह क्लाइव लॉयड जैसै महान कप्तान के तजुर्बे से समझा जा सकता है।