जब कभी भी यह चर्चा होती है की सचिन कोहली में महान क्रिकेटर कौन है तो अक्सर आजकल के युवा फैंस तर्क देते है की वह एक स्वार्थी खिलाड़ी थे।
एक क्रिकेट न्यूज वेबसाइट cricketaddictor.com के एक आर्टिकल के अनुसार–
“पूर्व भारतीय बल्लेबाजी के दिग्गज सचिन तेंदुलकर ने कई विश्व रिकॉर्ड के बनाए हैं। वह न केवल टेस्ट और एकदिवसीय मैचों में सबसे ज्यादा रन बनाने वाले खिलाड़ी हैं, बल्कि दोनों प्रारूपों में सबसे ज्यादा शतक लगाने वाले भी हैं।”
“पर अफसोस की बात है कि वह सबसे स्वार्थी क्रिकेटरों में से एक की सूची में शामिल होते है।”
“सचिन का यह स्वार्थ भरा पारी बांग्लादेश के खिलाफ 2012 के एशिया कप मैच में सबके सामने आया था। 47 वर्षीय 100वें अंतरराष्ट्रीय शतक के कारण काफी दबाव में थे।”
“वह इसे हासिल करने के लिए, उन्होंने बांग्लादेश के खिलाफ 147 गेंदों में 114 रन बनाकर धीमी पारी खेले थे।और भारतीय टीम अंततः पांच विकेट से हार गई।”
पर आइए हम आपको बताते है की क्या वो वास्तव में अपने करियर के ढलान में एक पारी के वजह से वो स्वार्थी हो गए?
इस प्रश्न का उत्तर कुछ उदाहरणों से दिया जा सकता है:
1998 में शारजाह कप:
इस प्रसिद्ध मैच में भारत को 19 गेंदों में 32 रनो की जरूरत थी।
सचिन तेंदुलकर के गेंद बैट पर लगी और विकेटकीपर के दस्तानों में चली गई।
डेमियन फ्लेमिंग की अपील
अंपायर ने नॉट आउट दिया।
सचिन तेंदुलकर नॉट आउट दिए जाने के बाद भी वापस चले गए।
2007 भारत बनाम इंग्लैंड
टेलीविजन रीप्ले से साफ पता चलता है कि तेंदुलकर नॉटआउट थे। फ्लिंटॉप की गेंद उनके बैट पर नही लगी थी और अंपायर का फैसला गलत था।
लेकिन फिर भी सचिन तेंदुलकर 99 के स्कोर पर मुस्कुराते हुए चले गए।
भारत बनाम वेस्टइंडीज
रवि रामपॉल ने अपील की
अंपायर उंगली नहीं उठाए और नॉट आउट देते हैं।
सचिन तेंदुलकर फिर भी चले गए।
अब आप खुद सोचिए क्या सचिन तेंदुलकर एक स्वार्थी खिलाड़ी हैं?
अगर हम अपना विचार दे तो, नहीं।बिल्कुल नहीं।